Wednesday, March 23, 2016

होली : रंगों का त्योहार - About Holi in Hindi




People in a joyful mood enjoying and celebrating the Holi festival, in New Delhi on March 06, 2015.
CNR :65498 Photo ID :62808

http://pib.nic.in/newsite/photo.aspx

Rang Chale Sar Sar Re : Bollywood Holi Film Hits || Audio Jukebox
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Uploaded by Venus March 2016

होली के दिन आये हैं हम
पिचकारी भर खुशियाँ  लाये हैं  हम
सुख संकेत रंग डालेंगे हम
आनंद हमारा बाटेंगे हम

तकलीफ सब  दहन हो गया  कल
सुख का ही अब  सोच हर पल
घर से निकल कर बोलता ही चल
होली का दिन आज फेंकने दे  जल

कर सबसे दोसती आज
मांगले माफी मिटादे दूरी
नजदीक जावे  रंग   लगावे
 शुभ शुभ होली गाना गावे

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होली का त्योहार


होली का त्योहार  रंगों का  त्योहार  है। इस दिन लोग एक दूसरे पर रंग फेंकते हैं और गुलाल लगाते हैं।

होली का महत्त्व - होली के साथ  एक पौराणिक कथा भी जुड़ी हुई है।  हिरण्यकश्यप एक राक्षस राजा था। उनके पुत्र  प्रहलाद विष्णु भक्त निकला। बार बार बोलने पर भी प्रह्लाद विष्णु गन जाता थ। हिरण्य कश्यम क्रोधित हुआ एंड कई तरह उनको सजा दिय। लेकिन प्रह्लाद को भगवान की रक्षा से कुछ भी तकलीफ नहीं हुअ। हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को मार डालने के लिए एनपी बहन  होलिका को नियुक्त किया था ! होलिका के पास एक ऐसी चादर थी , जिसे ओढ़ने पर व्यक्ति आग के प्रभाव से बच सकता था ! होलिका ने उस चादर को ओढ़कर प्रहलाद को गोद में ले लिया और अग्नि में कूद पड़ी ! वहाँ दैवीय चमत्कार हुआ ! चादर प्रह्लाद के ऊपर गिर पडी।   होलिका आग में जलकर भस्म हो गई , परंतु विष्णुभक्त प्रहलाद का बाल भी बाँका न हुआ ! भक्त की विजय हुई और राक्षस की पराजय ! उस दिन सत्य ने असत्य पर विजय घोषित कर दी ! तब से लेकर आज तक होलिका-दहन की स्मृति में होली का मस्त पर्व मनाया जाता है !

मनाने की विधि - होली का उत्सव दो प्रकार से मनाया जाता है ! कुछ लोग रात्रि में लकड़ियाँ , झाड़-झंखाड़ एकत्र कर उसमे आग लगा देते हैं और समूह में होकर गीत गाते हैं ! आग जलाने की यह प्रथा होलिका-दहन की याद दिलाती है ! ये लोग रात में आतिशबाजी आदि चलाकर भी अपनी खुशी प्रकट करते हैं !
    होली मनाने की दूसरी प्रथा आज सारे समाज में प्रचलित है ! होली वाले दिन लोग प्रातः काल से दोपहर 12 बजे तक अपने हाथों में लाल , हरे , पीले रंगों का गुलाल हुए परस्पर प्रेमभाव से गले मिलते हैं ! इस दिन किसी प्रकार का भेदभाव नहीं रखा जाता ! किसी अपरिचित को भी गुलाल मलकर अपने ह्रदय के नजदीक लाया जाता है !

नृत्य-गान का वातावरण - होली वाले दिन गली -मुहल्लों में ढोल-मजीरे बजते सुनाई देते हैं ! इस दिन लोग लोग समूह-मंडलियों में मस्त होकर नाचते-गाते हैं ! दोपहर तक सर्वत्र मस्ती छाई रहती है ! कोई नीले-पीले वस्त्र लिए घूमता है , तो कोई जोकर की मुद्रा में मस्त है ! बच्चे पानी के रंगों में एक-दुसरे को नहलाने का आनंद लेते हैं ! गुब्बारों में रंगीन पानी भरकर लोगों पर गुब्बारें फेंकना भी बच्चों का प्रिय खेल हो जा रहा है ! बच्चे पिचकारियों से भी रंगों की वर्षा करते दिखाई देते हैं ! परिवारों में इस दिन लड़के-लडकियाँ , बच्चे-बूढ़े , तरुण-तरुनियाँ सभी मस्त होते हैं ! अतः इससे मस्त उत्सव ढूँढना कठिन है और इसलिए यह मेरा प्रिय त्योहार है !

"I am a 9th to 12th standard student"

Originally published in Knol by Indrajeet Banerjee
Under creative commons 3.0




प्राचीन शब्दरूप
 इसका आरम्भिक शब्दरूप होलाका था। जैमिनि का कथन है कि 'होलाका' सभी आर्यो द्वारा सम्पादित होना चाहिए। काठकगृह्य में एक सूत्र है 'राका होला के', जिसकी व्याख्या टीकाकार देवपाल ने यों की है- 'होला एक कर्म-विशेष है जो स्त्रियों के सौभाग्य के लिए सम्पादित होता है, उस कृत्य में राका  देवता है। एक दूसरा टिका के अनुसार  'होलाका' उन बीस क्रीड़ाओं में एक है जो सम्पूर्ण भारत में प्रचलित हैं। इसका उल्लेख वात्स्यायन के कामसूत्र में भी हुआ है जिसका अर्थ टीकाकार जयमंगल ने किया है। फाल्गुन की पूर्णिमा पर लोग श्रृंग से एक-दूसरे पर रंगीन जल छोड़ते हैं और सुगंधित चूर्ण बिखेरते हैं। हेमाद्रि ने बृहद्यम का एक श्लोक उद्भृत किया है। जिसमें होलिका-पूर्णिमा को हुताशनी कहा गया है। लिंग पुराण में आया है- 'फाल्गुन पूर्णिमा को 'फाल्गुनिका' कहा जाता है, यह बाल-क्रीड़ाओं से पूर्ण है और लोगों को विभूति, ऐश्वर्य देने वाली है।' वराह पुराण में आया है कि यह 'पटवास-विलासिनी'  है।


 होलिका हेमन्त या पतझड़ के अन्त की सूचक है और वसन्त की कामप्रेममय लीलाओं की द्योतक है। मस्ती भरे गाने, नृत्य एवं संगीत वसन्तागमन के उल्लासपूर्ण क्षणों के परिचायक हैं। वसन्त की आनन्दाभिव्यक्ति रंगीन जल एवं लाल रंग, अबीर-गुलाल के पारस्परिक आदान-प्रदान से प्रकट होती है।

होलिका
हेमाद्रि ने भविष्योत्तर  से उद्धरण देकर एक कथा दी है। युधिष्ठिर ने कृष्ण से पूछा कि फाल्गुन-पूर्णिमा को प्रत्येक गाँव एवं नगर में एक उत्सव क्यों होता है, प्रत्येक घर में बच्चे क्यों क्रीड़ामय हो जाते हैं और 'होलाका' क्यों जलाते हैं, उसमें किस देवता की पूजा होती है, किसने इस उत्सव का प्रचार किया, इसमें क्या होता है और यह 'अडाडा' क्यों कही जाती है। कृष्ण ने  एक किंवदन्ती कही। राजा रघु के पास लोग यह कहने के लिए गये कि 'ढोण्ढा' नामक एक राक्षसी है जिसे शिव ने वरदान दिया है कि उसे देव, मानव आदि नहीं मार सकते हैं और न वह अस्त्र शस्त्र या जाड़ा या गर्मी या वर्षा से मर सकती है, किन्तु शिव ने इतना कह दिया है कि वह क्रीड़ायुक्त बच्चों से भय खा सकती है। तब पुरोहित ने  मुहूर्त निकला और कहां फाल्गुन की पूर्णिमा को जाड़े की ऋतु समाप्त होती है और ग्रीष्म ऋतु का आगमन होता है, तब लोग हँसें एवं आनन्द मनायें, बच्चे लकड़ी के टुकड़े लेकर बाहर प्रसन्नतापूर्वक निकल पड़ें, लकड़ियाँ एवं घास एकत्र करें, रक्षोघ्न मन्त्रों के साथ उसमें आग लगायें, तालियाँ बजायें, अग्नि की तीन बार प्रदक्षिणा करें, हँसें और प्रचलित भाषा में भद्दे एवं अश्लील गाने गायें, इसी शोरगुल एवं अट्टहास से तथा होम से वह राक्षसी मरेगी। जब राजा ने यह सब करवाया  तो राक्षसी मर गयी और वह दिन 'अडाडा' या 'होलिका' कहा गया। आगे आया है कि दूसरे दिन चैत्र की प्रतिपदा पर लोगों को होलिकाभस्म को प्रणाम करना चाहिए, मन्त्रोच्चारण करना चाहिए, घर के प्रांगण में वर्गाकार स्थल के मध्य में काम-पूजा करनी चाहिए। काम-प्रतिमा पर सुन्दर नारी द्वारा चन्दन-लेप लगाना चाहिए और 'काम देवता मुझ पर प्रसन्न हों' ऐसा कहना चाहिए। इसके आगे पुराण में आया है- 'जब शुक्ल पक्ष की 15वीं तिथि पर पतझड़ समाप्त हो जाता है और वसन्त ऋतु का प्रात: आगमन होता है तो जो व्यक्ति चन्दन-लेप के साथ आम्र-मंजरी खाता है वह आनन्द से रहता है।'

Story Behind Holika Dahan | Prahlad And Holika Story In Hindi

 होलिका-दहन

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Updated 22 March 2016, 9 March 2016

4 comments:

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