हमारे प्राचीन त्योहारों का कोई न कोई आधार होता है | कुछ नयी कथाएं भी उनके साथ जुड़ जाती हैं | रक्षा की अपेक्षा वाले इस त्यौहार के पीछे भी भगवान शंकर को राखी बाँधने की कथा आती है | जब राखी का यह सूत्र बहिन अपने भाई की कलाई पर बांधती है तब हमारे पंडितों के अनुसार एक मंत्र पढ़ा जाता है | वह इस प्रकार से है :
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः |
तेन त्वां प्रतिबद्धनामी रक्षे माचल माचल ||
अर्थात रक्षा के जिस सूत्र से महाबली राक्षसराज बली को बाँधा गया था, उसी धागे से मैं तुम्हें बांधती हूँ ; यह रक्षा में अचल रहे, अचल रहे | इस प्रकार इस त्यौहार से राजा बली की कथा भी जुडी हुई है | जो समस्त पृथ्वी के राजा थे व राक्षसराज थे |
मैं सोचता हूँ कि मंत्र में देवताओं या ईश्वर का नाम आना चाहिए न कि मनुष्यों या राक्षसों का | मंत्र देवताओं व ईश्वर के लिए ही होते हैं | मंत्र का अर्थ है कि आप जिस समय भी मंत्र से देव या ईश्वर का ध्यान कर रहे हैं, वे देव उसी समय आपकी अर्चना को सुन रहे हैं | जबकि यदि आप राक्षस या मनुष्य के नाम से मंत्र पढेंगे तो वह दूर बैठा न आपके मन की बात जान पायेगा और न ही आपकी आवाज सुन पायेगा |
अब इस मंत्र में एक और विसंगति है | दूसरी पंक्ति में कहा जा रहा है कि वह सूत्र रक्षा में अचल रहे | किन्तु सूत्र उसी की रक्षा करता है जिस पर वह बाँधा जाता है | यहाँ बहिन अपने भाई के हाथ पर सूत्र बांधते हुए यह कह रही है कि यह सूत्र रक्षा में अचल रहे | जबकि यह त्यौहार इस भावना से मनाया जाता है कि राखी बांधते हुए बहिन अपने भाई से अपनी रक्षा की अपेक्षा करती है |
लगता है कि देवों के निमित्त जो वास्तविक मंत्र था वह कहीं खो गया है | और अब हमारी स्मृति मैं नहीं है | फिर भी रक्षा बंधन का यह त्यौहार भाई और बहिन के बीच स्नेह का बंधन है जो हर वर्ष आकर स्नेह की एक और गाँठ बाँध कर उसे और प्रबल कर देता है |
जब बच्चे इस त्यौहार को मानते हैं तो वे बहिन के रक्षा का उत्तरदायित्व नहीं लेते हैं और न ले ही सकते हैं | इस त्यौहार में राखी बांधते हुए स्नेह का ही विनिमय होता है | मेरे विचार से इस त्यौहार को स्नेह बंधन कहना अधिक उचित होगा |
Article by Diwakar Sharma in Hindi on knol
http://knol.google.com/k/diwakar-sharma/-/3f0ibblitj66a/53
Under Creative Commons 3.0
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ok
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