मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या (अन्य रूप में विश्वेश्वरैया) एक प्रतिष्ठित भारतीय अभियन्ता थे। इनका जन्मदिन 15 सितम्बर को भारत में अभियंता दिन मनाया जाता है।
विश्वेश्वरय्या का जन्मदिन 15 सितम्बर 1860 है।
उन्होंने चिकबल्लापुर में प्राथमिक शिक्षा लिया और बैंगलोर में माध्यमिक शिक्षा लिय। उन्होंने 1881 में मद्रास विश्वविद्यालय से संबद्ध सेंट्रल कॉलेज, बैंगलोर से कला की बैचलर डिग्री अर्जित की और अभियांत्रिकी महाविद्यालय, पुणे में सिविल इंजीनियरिंग का अध्ययन किया.
सन 1884 में बम्बई राज्य निर्माण विभाग में सहायक अभियंता के पद पर नियुक्त हुए। बहुत कुछ में प्रतिभा दिखाकर विश्वेश्वरय्या सुपरिंटेंडिंग अभियंता बन गए। सन 1893 में इन्होने सक्खर बाँध का निर्माण कराया। 1899 में सिंचाई के ब्लाक सिस्टम का आविष्कार किया। इसका पूरा विश्व में इनका प्रशंसा हुई। खुद तिलक ने भी प्रशंसा की। मुख्य अभियंता पद नहीं मिलने की कारण विश्वेश्वरय्या सरकारी नौकरी छोड़ दि। वो विश्व भ्रमण के लिए और उद्योग-धंधोंकी जानकारी प्राप्ति करने के लिया विदेश यात्रा शुरू कि।
उस समय में हैदराबाद में एक भीषण बाढ़ आया और बहुत नुक्सान हुआ। समस्या का समाधान के लिए हैदराबाद निजाम विश्वेश्वरय्या को विदेश से भारत वापस आके काम करने लिए बुलाया। मुसी नदी की बाँध का निर्माण वो एक प्रणाली बनाके पूरा किया. इसके पश्चात विश्वेश्वरय्या को खुदका राष्ट्र मैसूर राज्य का मुख्य अभियंता पद मिला। 1912 में कावेरी नदी पर कृष्ण राजा सागर निर्माण कराके विश्वेश्वरय्या सब को चकित कर दिया। ए काम करने के लिए अंग्रेजी अभियंता उत्सुक नहीं थे। मगर अपनी सोच से विद्युत का भी परियोजना मिलाके इस काम को लाभदायक दिखाके निश्चित व्यवधि में निर्माण कार्यक्रम पूरा करके, ऐ भारतीय अभियंता देश का प्रशंसा पात्र बन गया। गांधीजी ने पुल निर्माण की और अभियंता का कार्यकुशलता को उल्लेखनीय समझ के अपनी पत्रिका में प्रशंसा की।
मैसूर राजा ने विश्वेश्वरय्या को दीवान पद पर नियुक्त किया। आई सी यस अधिकारियों ने विरोध प्रकट किया पर राजा ने माना नहीं। मैसूर राज्य में नई धंधों का चालु कराया। भद्रवती का इस्पात कारखाना स्तापना करवाई। मैसूर महाविद्याला की स्थापना हुई। 1927 में टाटा इस्पात संस्था का निदेशक बने। 1955 तक वो टाटा में निदेशक थे।
7 सितम्बर 1955 को राष्ट्र पति डॉ राजेन्द्र प्रसाद इन्हे भारत रत्न स अलंकृत किया।
इनका 100 वा जन्मा दिन 15 सितम्बर 1960 का दिन पर बहुत धूम धाम से मनाया गया। एक विशेष डाक टिकट की जारी हुई ।
14 अप्रैल सं 1962 को इनका देहांत हो गया।
हर सितम्बर 15 के दिन पर पूरा देश इन्हे याद करता है और अभियांत्रिकी विद्या और व्यापार को अच्छी तरह आगे बढ़ाने का उपाय सोचने में लगती है।
http://books.google.co.in/books?id=vGzualt18GAC&lpg=PP1&pg=PA39#v=onepage&q&f=false
विश्वेश्वरय्या का जन्मदिन 15 सितम्बर 1860 है।
उन्होंने चिकबल्लापुर में प्राथमिक शिक्षा लिया और बैंगलोर में माध्यमिक शिक्षा लिय। उन्होंने 1881 में मद्रास विश्वविद्यालय से संबद्ध सेंट्रल कॉलेज, बैंगलोर से कला की बैचलर डिग्री अर्जित की और अभियांत्रिकी महाविद्यालय, पुणे में सिविल इंजीनियरिंग का अध्ययन किया.
सन 1884 में बम्बई राज्य निर्माण विभाग में सहायक अभियंता के पद पर नियुक्त हुए। बहुत कुछ में प्रतिभा दिखाकर विश्वेश्वरय्या सुपरिंटेंडिंग अभियंता बन गए। सन 1893 में इन्होने सक्खर बाँध का निर्माण कराया। 1899 में सिंचाई के ब्लाक सिस्टम का आविष्कार किया। इसका पूरा विश्व में इनका प्रशंसा हुई। खुद तिलक ने भी प्रशंसा की। मुख्य अभियंता पद नहीं मिलने की कारण विश्वेश्वरय्या सरकारी नौकरी छोड़ दि। वो विश्व भ्रमण के लिए और उद्योग-धंधोंकी जानकारी प्राप्ति करने के लिया विदेश यात्रा शुरू कि।
उस समय में हैदराबाद में एक भीषण बाढ़ आया और बहुत नुक्सान हुआ। समस्या का समाधान के लिए हैदराबाद निजाम विश्वेश्वरय्या को विदेश से भारत वापस आके काम करने लिए बुलाया। मुसी नदी की बाँध का निर्माण वो एक प्रणाली बनाके पूरा किया. इसके पश्चात विश्वेश्वरय्या को खुदका राष्ट्र मैसूर राज्य का मुख्य अभियंता पद मिला। 1912 में कावेरी नदी पर कृष्ण राजा सागर निर्माण कराके विश्वेश्वरय्या सब को चकित कर दिया। ए काम करने के लिए अंग्रेजी अभियंता उत्सुक नहीं थे। मगर अपनी सोच से विद्युत का भी परियोजना मिलाके इस काम को लाभदायक दिखाके निश्चित व्यवधि में निर्माण कार्यक्रम पूरा करके, ऐ भारतीय अभियंता देश का प्रशंसा पात्र बन गया। गांधीजी ने पुल निर्माण की और अभियंता का कार्यकुशलता को उल्लेखनीय समझ के अपनी पत्रिका में प्रशंसा की।
मैसूर राजा ने विश्वेश्वरय्या को दीवान पद पर नियुक्त किया। आई सी यस अधिकारियों ने विरोध प्रकट किया पर राजा ने माना नहीं। मैसूर राज्य में नई धंधों का चालु कराया। भद्रवती का इस्पात कारखाना स्तापना करवाई। मैसूर महाविद्याला की स्थापना हुई। 1927 में टाटा इस्पात संस्था का निदेशक बने। 1955 तक वो टाटा में निदेशक थे।
7 सितम्बर 1955 को राष्ट्र पति डॉ राजेन्द्र प्रसाद इन्हे भारत रत्न स अलंकृत किया।
इनका 100 वा जन्मा दिन 15 सितम्बर 1960 का दिन पर बहुत धूम धाम से मनाया गया। एक विशेष डाक टिकट की जारी हुई ।
14 अप्रैल सं 1962 को इनका देहांत हो गया।
हर सितम्बर 15 के दिन पर पूरा देश इन्हे याद करता है और अभियांत्रिकी विद्या और व्यापार को अच्छी तरह आगे बढ़ाने का उपाय सोचने में लगती है।
http://books.google.co.in/books?id=vGzualt18GAC&lpg=PP1&pg=PA39#v=onepage&q&f=false
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